कुरुक्षेत्र के युद्धस्थल में सैन्यनिरीक्षण
धृतराष्ट्र उवाच
धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सवः ।
मामकाः पाण्डवाश्चैव किमकुर्वत सञ्जय ॥१॥
धृतराष्ट्र ने कहा- हे संजय! धर्मभूमि कुरुक्षेत्र में युद्ध की इच्छा से एकत्र हुए मेरे तथा पाण्डु के पुत्रों ने क्या किया?
तात्पर्य : भगवद्गीता एक बहुपठित आस्तिक विज्ञान है जो गीता-माहात्म्य में सार रूप में दिया हुआ है। इसमें यह उल्लेख है कि मनुष्य को चाहिए कि वह श्रीकृष्ण के भक्त की सहायता से संवीक्षण करते हुए भगवद्गीता का अध्ययन करे और स्वार्थप्रेरित व्याख्याओं के बिना उसे समझने का प्रयास करे। अर्जुन ने जिस प्रकार से साक्षात् भगवान् कृष्ण से गीता सुनी और उसका उपदेश ग्रहण किया, इस प्रकार की स्पष्ट अनुभूति का उदाहरण भगवद्गीता में ही है। यदि उसी गुरु-परम्परा से, निजी स्वार्थ से प्रेरित हुए बिना, किसी को भगवद्गीता समझने का सौभाग्य प्राप्त हो तो वह समस्त वैदिक ज्ञान तथा विश्व के समस्त शास्त्रों के अध्ययन को पीछे छोड़ देता है। पाठक को भगवद्गीता में न केवल अन्य शास्त्रों की सारी बातें मिलेंगी अपितु ऐसी बातें भी मिलेंगी जो अन्यत्र कहीं उपलब्ध नहीं हैं। यही गीता का विशिष्ट मानदण्ड है। स्वयं भगवान् श्रीकृष्ण द्वारा साक्षात् उच्चरित होने के कारण य पूर्ण आस्तिक विज्ञान है।
महाभारत में वर्णित धृतराष्ट्र तथा संजय की वार्ताएँ इस महान दर्शन के मूल सिद्धान्त का कार्य करती हैं। माना जाता है कि इस दर्शन की प्रस्तुति कुरुक्षेत्र के युद्धस्थल में हुई जो वैदिक युग से पवित्र तीर्थस्थल रहा है। इसका प्रवचन भगवान्
मानव जाति के पथ-प्रदर्शन तब किया गया जब इस लोक स्वयं
धर्मक्षेत्र शब्द सार्थक क्योंकि कुरुक्षेत्र के युद्धस्थल में अर्जुन के पक्ष श्रीभगवान् स्वयं उपस्थित कौरवों पिता धृतराष्ट्र अपने पुत्रों विजय को सम्भावना विषय में अत्यधिक संदिग्ध था। अतः सन्देह के कारण उसने सचिव पूछा, “उन्होंने क्या किया ?” वह आश्वस्त कि पुत्र तथा छोटे भाई पाण्डु के पुत्र की युद्धभूमि में निर्णयात्मक संग्राम लिए एकत्र हुए फिर भी उसकी जिज्ञासा सार्थक है। नहीं चाहता कि भाइयों कोई समझौता हो, वह युद्धभूमि में अपने पुत्रों की नियति (भाग्य, भावी) विषय में आश्वस्त चाह रहा था। चूँकि युद्ध को कुरुक्षेत्र लड़ा जाना जिसका उल्लेख में के निवासियों के लिए तीर्थस्थल के रूप में हुआ है अतः धृतराष्ट्र अत्यन्त भयभीत कि पवित्र स्थल का के परिणाम न जाने कैसा प्रभाव पड़े। उसे भलीभांति ज्ञात कि इसका प्रभाव अर्जुन तथा पाण्डु अन्य पुत्रों पर अत्यन्त अनुकूल पड़ेगा क्योंकि स्वभाव से सभी पुण्यात्मा संजय व्यास का शिष्य अतः उनकी कृपा संजय धृतराष्ट्र के कक्ष में बैठे-बैठे कुरुक्षेत्र के युद्धस्थल दर्शन युद्धस्थल की स्थिति विषय पूछा।
पाण्डव तथा धृतराष्ट्र के दोनों एक वंश से सम्बन्धित किन्तु यहाँ धृतराष्ट्र के वाक्य से उसके मनोभाव प्रकट होते उसने जान-बूझ अपने पुत्रों को कहा और पाण्डु पुत्रों वंश के उत्तराधिकार
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